भारत का नामकरण: एक ऐतिहासिक दृष्टिकोण

नमस्कार! सत्याधी शर्मा क्लासेस के इस महत्वपूर्ण ब्लॉग में आपका स्वागत है। आज हम भारत के नामकरण के विषय पर गहराई से चर्चा करेंगे। हमारे देश के नाम का इतिहास अत्यंत रोचक और विविधतापूर्ण है, जो हमारे प्राचीन संस्कृत और संस्कृति से गहरा जुड़ा हुआ है।

G-20 शिखर सम्मेलन के पहले  निमंत्रण पत्र में एक उल्लेखनीय बदलाव किया था । पारंपरिक “प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया” के बजाय, निमंत्रणों पर अब “भारत के राष्ट्रपति” शब्द का प्रयोग किया गया है, इसने देश के नामकरण और इसके ऐतिहासिक अर्थों को लेकर व्यापक बहस को जन्म दे दिया है।

 

इण्डिया का उद्गम

हम प्रायः अपने देश को इण्डिया के नाम से जानते हैं। यह नाम ‘इण्डस’ शब्द से निकला है, जिसे संस्कृत में ‘सिन्धु’ कहा जाता है। सिन्धु नदी के किनारे बसी सभ्यता और संस्कृति के आधार पर विदेशी यात्रियों ने हमारे देश को इण्डिया नाम दिया। यह नाम धीरे-धीरे प्रचलन में आया और आज भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को इसी नाम से जाना जाता है।

सिन्धु नदी भारतीय उपमहाद्वीप की प्रमुख नदी है, जो प्राचीन काल से ही यहाँ की सभ्यता और संस्कृति का केंद्र रही है। प्राचीन यूनानी यात्री और इतिहासकार जब भारत आए, तो उन्होंने सिन्धु नदी को ‘इंडस’ के रूप में जाना और इसी आधार पर पूरे उपमहाद्वीप को ‘इण्डिया’ नाम दिया। हेरोडोटस जैसे यूनानी इतिहासकारों ने भी अपने लेखों में इस नाम का उल्लेख किया है।

भारत का नामकरण

इसके अलावा, पर्शियन और अरब यात्री भी जब भारतीय उपमहाद्वीप में आए, तो उन्होंने सिन्धु नदी के नाम पर इस क्षेत्र को ‘हिंद’ या ‘हिन्दुस्तान’ कहा। ये नाम आगे चलकर यूरोपीय देशों में ‘इण्डिया’ के रूप में प्रसिद्ध हुए।

मध्यकालीन युग में, विशेष रूप से जब ब्रिटिश भारत में आए, तो उन्होंने भी इसी नाम का उपयोग किया और धीरे-धीरे ‘इण्डिया’ नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के लिए प्रचलित हो गया। आज भी आधिकारिक रूप से और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत को ‘इण्डिया’ के नाम से पहचाना जाता है।

इस प्रकार, ‘इण्डिया’ नाम हमारी प्राचीन सभ्यता, संस्कृति और इतिहास की धरोहर है, जो सिन्धु नदी और उसकी सभ्यता से गहरे रूप से जुड़ा हुआ है।

भारतवर्ष का उल्लेख
भारतवर्ष का उल्लेख

भारतवर्ष नाम का सबसे प्राचीन उल्लेख महान वैयाकरण पाणिनी की अष्टाध्यायी में मिलता है। पाणिनी, जो 4थी शताब्दी ईसा पूर्व में हुए, उन्होंने भारतवर्ष शब्द का उल्लेख अपने व्याकरण ग्रंथ में किया। उनके ग्रंथ में इस नाम का उल्लेख होने से यह स्पष्ट होता है कि उस समय तक यह नाम प्रचलन में था और इसका प्रयोग व्यापक रूप से किया जाता था।

इसके अलावा, खारवेल के हाथी गुम्फा अभिलेख में भी भारतवर्ष का उल्लेख मिलता है। यह अभिलेख तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व का है, जिसमें खारवेल ने अपनी विजयों का वर्णन किया है और भारतवर्ष का उल्लेख किया है। यह अभिलेख उड़ीसा के उदयगिरि और खंडगिरि की गुफाओं में पाया जाता है। इसमें खारवेल की विजय यात्राओं और उनके शासनकाल की घटनाओं का वर्णन है, जिसमें भारतवर्ष का नाम उल्लिखित है।

महाभारत और अन्य प्राचीन ग्रंथों में भी भारतवर्ष का उल्लेख मिलता है। महाभारत में, इसे एक विशाल भू-भाग के रूप में वर्णित किया गया है, जो उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में समुद्र तक फैला हुआ है। महाभारत के अनुसार, यह भूमि विभिन्न जनजातियों, राज्यों और संस्कृतियों का समुच्चय थी, जिसे भारतवर्ष कहा गया।

भारतवर्ष नाम के ऐतिहासिक उल्लेख न केवल भारतीय ग्रंथों में बल्कि बौद्ध और जैन साहित्य में भी मिलते हैं। बौद्ध ग्रंथों में इसे जम्बूद्वीप का एक महत्वपूर्ण भाग कहा गया है। जैन ग्रंथों में भी इसे एक पवित्र और धार्मिक स्थल के रूप में वर्णित किया गया है, जहाँ धर्म और संस्कृति की उन्नति हुई।

भारतवर्ष नाम का उपयोग सिर्फ धार्मिक और ऐतिहासिक संदर्भों में ही नहीं, बल्कि भूगोल और सामाजिक संदर्भों में भी होता था। यह नाम हमारे प्राचीन समाज की विविधता, संस्कृति और सभ्यता को समेटे हुए है। यह नाम हमारे गौरवशाली अतीत का प्रतीक है और आज भी हमारे देश की एकता और अखंडता का प्रतीक बना हुआ है।

भरत के नाम पर नामकरण

भरत के नाम पर नामकरण पर कई मत है जिनमे कुछ इस प्रकार है .

महर्षि विश्वामित्र और अप्सरा मेनका की बेटी शकुन्तला और पुरुवंशी राजा दुष्यन्त के बीच गान्धर्व विवाह होता है। इस विवाह के फलस्वरूप, शकुन्तला ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम भरत रखा गया। ऋषि कण्व, जिन्होंने शकुन्तला का पालन-पोषण किया था, ने भरत को आशीर्वाद दिया कि वह आगे चलकर एक चक्रवर्ती सम्राट बनेंगे और उनके नाम पर इस भूखंड का नाम भारत प्रसिद्ध होगा।

भरत की कहानी महाभारत और अन्य पुराणों में विस्तार से वर्णित है। भरत एक महान शासक थे, जिनकी वीरता, न्यायप्रियता और अद्वितीय शासन प्रणाली ने उन्हें इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया। उनके शासनकाल में भारतवर्ष एक समृद्ध और शक्तिशाली राज्य बना, जिसकी महानता दूर-दूर तक फैली।

भरत का राज्य चक्रवर्ती सम्राट का था, जिसका अर्थ है कि उनका शासन पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर था। वे अपनी योग्यता, पराक्रम और नीतियों के लिए प्रसिद्ध थे। उनके शासनकाल में समाज की सभी वर्गों को समान अधिकार और सम्मान मिला, जिससे राज्य में समृद्धि और शांति का वातावरण बना।

भरत की महानता और उनके यश के कारण ही इस भूखंड का नाम भारत पड़ा। यह नाम हमारे गौरवशाली इतिहास, संस्कृति और परंपराओं को दर्शाता है। भरत के शासनकाल की महानता का वर्णन महाभारत और अन्य पुराणों में मिलता है, जो हमें यह समझने में मदद करता है कि हमारे देश का नामकरण कितनी गहरी और समृद्ध परंपराओं से जुड़ा हुआ है।

 तथा एक अन्य मत के अनुसार –
 

भारत का यह नामकरण ऋग्वैदिक काल के प्रमुख जन ‘भरत’ के नाम पर किया गया। भरत जनजाति आर्यों में से एक प्रमुख जनजाति थी, जिनकी वीरता और शासन का उल्लेख वेदों और पुराणों में मिलता है। ऋग्वेद में ‘भरत’ नामक जनजाति का उल्लेख उनके यश और पराक्रम के लिए किया गया है।

भरत जनजाति के लोग अपनी वीरता, युद्धकौशल और उन्नत समाज व्यवस्था के लिए प्रसिद्ध थे। ऋग्वेद के सातवें मंडल में राजा सुदास के नेतृत्व में दस राजाओं के युद्ध का वर्णन मिलता है, जिसमें भरत जनजाति ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस युद्ध में भरत जनजाति की विजय ने उन्हें एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया और उनके नाम को अमर कर दिया।

भरत जनजाति की महिमा केवल ऋग्वेद तक सीमित नहीं है। पुराणों और अन्य धार्मिक ग्रंथों में भी भरत जनजाति और उनके राजा भरत का उल्लेख मिलता है। राजा भरत ने अपनी अद्वितीय नीतियों और न्यायप्रियता से राज्य को समृद्ध और शक्तिशाली बनाया। उनकी महानता और न्यायप्रियता के कारण उनके नाम पर इस भूमि का नाम भारत पड़ा।

भरत के नाम पर भारत का नामकरण एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना है, जो हमारी प्राचीन संस्कृति और सभ्यता को दर्शाती है। भरत जनजाति की महानता और उनके यश के कारण आज भी हम गर्व से अपने देश को भारत कहते हैं।

प्रथम जैन तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र भरत

एक अन्य मान्यता के अनुसार, भारत का नामकरण प्रथम जैन तीर्थंकर ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र भरत के नाम पर किया गया। ऋषभदेव ने अपने पुत्र भरत को इस भूमि का शासक नियुक्त किया और उनके धर्म और न्याय के प्रति आदर्शों के कारण यह नामकरण हुआ। जैन ग्रंथों में भरत की महानता और उनकी शासन प्रणाली का विस्तृत वर्णन मिलता है।

भरत एक महान शासक थे जिन्होंने अपने राज्य को धर्म, न्याय और समृद्धि का केंद्र बनाया। उनके आदर्श और शासन प्रणाली ने भारतीय संस्कृति और परंपराओं को गहराई से प्रभावित किया। जैन धर्म के अनुसार, भरत एक चक्रवर्ती सम्राट थे, जिन्होंने अपने धर्म और नीति से पूरे देश को एकजुट किया।

आर्यावर्त और जम्बूद्वीप

आर्यों का निवास स्थल होने के कारण हमारे देश को आर्यावर्त भी कहा गया। आर्यावर्त का अर्थ है आर्यों का निवास स्थान, जो उत्तर भारत से लेकर मध्य भारत तक फैला हुआ था। यह नाम हमारी संस्कृति और सभ्यता की गहराई को दर्शाता है।

भारत को जम्बूद्वीप का एक भाग भी माना जाता है। जम्बूद्वीप प्राचीन भारतीय भूगोल में पृथ्वी के सात द्वीपों में से एक था। यह नाम हमारी पौराणिक कथाओं और ग्रंथों में वर्णित है, जो हमारे देश की भौगोलिक और सांस्कृतिक विविधता को दर्शाता है।

भारत का नामकरण एक अत्यंत समृद्ध और विविधतापूर्ण इतिहास को समेटे हुए है। यह हमारे पूर्वजों की महानता, उनकी संस्कृति, और उनकी वीरता को दर्शाता है। सत्याधी शर्मा क्लासेस में, हम इस गौरवशाली इतिहास को जानने और समझने के प्रयास में लगे रहते हैं। आशा है कि इस ब्लॉग के माध्यम से आपको भारत के नामकरण के विषय में नई और रोचक जानकारी मिली होगी।

धन्यवाद!