गाँधी जी और उनके सिद्धांत
- By satyadhisharmaclassesofficial
- October 3, 2023
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भारतीय सभ्यता की श्रेष्ठता को संपूर्णता के रूप में प्रस्तुत करने वाले महात्मा गांधी के विचारों ने दुनिया भर के लोगों को न सिर्फ प्रेरित किया बल्कि करुणा और शांति के दृष्टिकोण से भारत व दुनिया को बदलने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका मानना था कि पश्चिमी सभ्यता जहाँ भोग-विलास और शारीरिक सुख को ही अंतिम उद्देश्य मानकर चलती है, वहीं भारतीय सभ्यता आत्मिक उन्नयन की बात करती है। गांधी कहते थे कि सुख की आकांक्षा का विस्तार अनंत है तथा इसके मूल में विनाश है। अत: मानवता के सहज विकास के लिये आवश्यक है कि मनुष्य इस छलावे वाली प्रगति से उबर कर स्वाभाविक विकास को अपनाए। लेकिन वर्तमान समय में झूठ-फरेब, छलावा बढ़ता ही जा रहा है, लगभग हर व्यक्ति अपने चेहरे पर मुखौटा लगाए हुए है। आज लोग सोशल मीडिया में प्रसिद्धि पाने के लिये तरह-तरह के पैंतरे अपना रहे हैं। छोटी-छोटी बातों पर दंगे व हत्याएँ की जा रही हैं। ऐसे में गांधी का दर्शन व विचारधारा ही है जो हमें सत्मार्ग पर ला सकती है। आज ऐसा प्रतीत होता है कि गांधी के विचार तत्कालीन समय में जितने प्रासंगिक थे, उससे कई गुना ज़्यादा वर्तमान में प्रासंगिक हैं। तभी रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने गांधी के बारे लिखा है कि-
“एक देश में बांध संकुचित करो न इसको
गांधी का कर्तव्य क्षेत्र, दिक् नहीं, काल है
गांधी है कल्पना जगत के अगले युग की
गांधी मानवता का अगला उद्विकास है”
गांधी जी ने अपने पूरे जीवनकाल में सिद्धांतों और प्रथाओं को विकसित करने पर ज़ोर दिया और हाशिये पर स्थित समूहों व पीड़ित समुदायों के लिये आवाज़ उठाई। गांधी 'सर्वधर्म समभाव' की भावना से प्रेरित थे जो कि आधुनिक युग में वैश्विक सद्भावना का वातावरण बनाए रखने और 'वसुधैव कुटुम्बकम' के विचार को साकार करने के लिये बेहद ज़रूरी है। वह साधन व साध्य दोनों की शुद्धता पर बल देते थे। उनके अनुसार, साधन व साध्य के मध्य बीज और पेड़ जैसा संबंध है और बीज के दूषित होने की दशा में स्वस्थ पेड़ की उम्मीद करना अकल्पनीय है।
गांधी की सत्य की अवधारणा: गांधी जी सत्य को ईश्वर का पर्याय मानते थे। वे अपने वचनों और चिंतन में भी सत्य को स्थापित करने का पूरा प्रयास करते थे। लेकिन आधुनिक समय में आम आदमी ही नहीं बल्कि ईश्वर को साक्षी मानकर अपने पद की शपथ लेने वाले राजनेता व मंत्री तक अपनी लोकप्रियता बरकरार रखने के लिये झूठ बोलने से नहीं कतराते हैं। ऐसे में ज़रूरी है कि देश में गांधीवादी सिद्धांतों का सही तरह से पालन किया जाए, जिससे देश नवनिर्माण की दिशा में आगे बढ़ सके।
गांधी का अहिंसा दर्शन: गांधी के अनुसार मन, वचन और शरीर से किसी को भी दु:ख न पहुँचाना ही अहिंसा है। उनका मत था कि हिंसा की बजाय अहिंसा के ज़रिये अपनी मांगों को आसानी से मनवाया जा सकता है। उन्होंने अहिंसा को अपने हथियार के रूप में इस्तेमाल करके आजादी के महत्वपूर्ण आंदोलनों को सफल बनाया। वह समझते थे कि निहत्थे का हथियार बंदूक नहीं है। बंदूक तो सत्ता का हथियार है। एक जगह तो उन्होंने अहिंसा को एटम बम से भी ज़्यादा प्रभावी बताया है।

यदि वर्तमान में इस सिद्धांत का पालन किया जाए तो क्षुद्र राजनीतिक व आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिये व्याकुल समाज व विश्व अपनी कई समस्याओं का निदान कर सकता है। लेकिन आज संपूर्ण विश्व अपनी समस्याओं का समाधान हिंसा के माध्यम से करना चाहता है। वैश्वीकरण के इस दौर में ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की अवधारणा ही खत्म होती जा रही है।
हार्वर्ड के प्रोफेसर लेसली के फिंगर का कहना है कि 21वीं सदी दुनिया के इतिहास में तुलनात्मक रूप से सबसे सुंदर दौर है। इसके बावजूद विश्व के अधिकांश देशों में अशांति फैली हुई है। अधिकतम देश हिंसा और युद्ध के शिकार हैं। यह अंधी दौड़ दुनिया को अंतत: विनाश की ओर ले जा रही है। एक रिपोर्ट से पता चला है कि, 20वीं सदी में सिर्फ 26 प्रतिशत हिंसक आंदोलन सफल और 64 प्रतिशत असफल रहे, जबकि इस दौरान 54 प्रतिशत अहिंसक अभियान सफल रहे। यानी हिंसक आंदोलनों की तुलना में अहिंसक आंदोलन बदलाव लाने में ज़्यादा सफल रहे। आज ज़रूरत है कि दुनिया इस व्यवहारिकता को पहचाने। इस संदर्भ में कवि माखनलाल चतुर्वेदी लिखते हैं-
‘’किंतु, क्या कहता है, आकाश? ह्रदय! हुलसो सुन यह गुंजार!
पलट जाए चाहे संसार, न लूँगा इन हाथों तलवार!’’

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